Monday, June 26, 2023

Al Farabi on Societies

Al-Farabi was a famous philosopher from the Islamic philosophy tradition. On the question of why and how societies decline from the ideal, he said that this happens for one of the three reasons:

  1. Because of Ignorance
  2. Because of Wickedness 
  3. Because of Error
Why Because of Ignorance: 

Ignorant cities fail to grasp the true nature of humanity and the reason for its existence.

Why because of Wickedness:

Wicked cities once new or perhaps still know, what is the reason for humanity's existence, but they fail to act on that knowledge. The wicked ones fail to act on knowledge because they are wicked. That is how such societies reach downhill from the pinnacle of their existence. 

Why because of Error:

The errant societies fail to act on the knowledge of true nature of humanity's existence and the reason for its existence. This happens because either they misapply their knowledge or their rulers mislead them. 


Source: The History of Philosophy by A. C. Grayling 

Thursday, November 10, 2022

शाम के दो चाँद

चांद मर गया है पूरी तरह,

वो दोबारा जिंदा होगा
अगले बसंत में,

जब दक्षिण की हवा
पोपलर के पेडों को हिलाती है,

जब हमारे दिल में 
आहों की फसल पकती है

जब छत घास की
चादर ओढ़ लेते हैं

चांद मर गया है पूरी तरह
वो दोबारा जिंदा होगा
अगले बसंत में

~ फेडरिको गार्सिया लोर्का

अंग्रेजी अनुवाद: सारा अरविओ
हिंदी अनुवाद: शाहिद अंसारी

Sunday, November 6, 2022

रिकार्डो एलिसर नेफताली रीस बेसोअल्टो उर्फ़ (पाब्लो नेरुदा)

 रिकार्डो एलिसर नेफताली रीस बेसोअल्टो उर्फ़ (पाब्लो नेरुदा)

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पाब्लो नेरुदा, का असल नाम रिकार्डो एलिसर नेफताली रीस बेसोअल्टो था।


पाब्लो नेरुदा उन्होंने अपना पेन नेम रखा। कुछ लोग मानते हैं कि ये नाम उन्होंने चेक कवि "जान नेरुदा" से प्रभावित होकर रखा। 


अगर ये सच माना जाए तो कितना शानदार है कि कोई शख्स किसी दूसरे कवि से प्रभावित होकर अपना नाम रखे जो बाद में उनका लीगल नाम भी बना। 


दूसरे कुछ लोग मानते हैं कि ये नाम उन्होंने मोरावियन वायलेनिस्ट विल्मा नेरुदा से प्रभावित होकर रखा। 


चौदह साल की उम्र से नेरुदा कवि के रूप में अपनी पहचान बना चुके थे और उनका कविता संग्रह "ट्वेंटी लव पोएम्स एंड ए सॉन्ग ऑफ़ डिस्पेयर" उन्होंने बीस साल की उम्र में पब्लिश किया। 


गैब्रियल गार्सिया मार्केज, ने नेरुदा को बीसवीं शताब्दी का किसी भी भाषा में सबसे महान कवि बताया।


नेरुदा को चिली का राष्ट्र कवि भी माना जाता है।


नेरुदा कहते थे कि उन्होंने किसी भी किताब में कविता लिखने का फॉर्मूला नहीं पाया और ना ही वो नई पीढ़ी के कवियों के लिए ऐसी कोई सलाह देंगे। 


नेरुदा कविता में लोगों के हाथों के निशान देखना चाहते थे। एक चिकनी मिट्टी सी कविता जिसमें पानी गीत गा सके। एक रोटी सी कविता जहां सब खा सकें। 


नेरुदा स्पेन, फ्रांस और मैक्सिको में राजदूत भी रहे और चिली के संसद  सदस्य भी रहे। 


उनकी कविताओं में उस दौर के राजनीतिक घटनाओं से उपजा चिंतन भी दिखता है। 


चाहे वो सेकंड वर्ल्ड वॉर हो, या क्यूबा की समस्या, रूसी कम्युनिज्म से लेकर वियतनाम युद्ध तक, सब कुछ उनकी नजर से कविता में दर्ज हुआ। 


नेरुदा एक समय चिली के राष्ट्रपति बनने वाले थे जब उन्होंने साल्वाडोर आलेंदे को अपना समर्थन दिया और आलेन्दे राष्ट्रपति बने। 


नेरुदा मानते थे की इंसान और लेखक की सबसे बड़ी जिम्मेदारी जीवन को आत्मसात करने और सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने की है। 


Thursday, February 10, 2022

धार्मिक चिन्ह और इच्छा

 बात ड्रेस कोड या यूनिफार्म की नहीं है, दरअसल धार्मिक चिन्हों की है।

केश, कंघा, कच्छा, किरपाण, कड़ा, चुटिया या शिखा, जनेऊ, हाथ में बाँधने वाला रंगीन धागा, दाढ़ी, मूँछ, टोपी, इत्यादि इत्यादि सब धार्मिक चिन्ह हैं।
जो इंसान मर्द या औरत इन चिन्हों को धारण कर रहा है उसके मूल में धर्म ही है।
अब अगर स्कूल या कॉलेज जाने कि पहली शर्त धार्मिक चिन्हों का त्याग है तो सिख भाई या बहन को कहें कि वो किरपाण का त्याग करके ही स्कूल में दाखिल या प्रवेश कर सकता है। सिख भाई पगड़ी, केश, कंघा, कड़ा उतारकर आयें ।
हिंदू भाई चुटिया कटवा कर और जनेऊ बाहर उतारकर ही क्लास रूम में प्रवेश करें।
यहूदी भाई साईड हेयर या कलम मूंडवा कर और सर की अपनी छोटी टोपी उतार कर ही स्कूल आयें।
मुसलमान भाई क्लीन शेव होकर, बिना टोपी स्कूल आये। मुसलमान बहन बिना हिजाब या बुरका के स्कूल आये।
ईसाई भाई बंधु गले में पहने क्रास को उतारकर स्कूल आयें।
शादीशुदा हिंदु महिला मंगल सूत्र उतारकर स्कूल आये।
शादीशुदा ईसाई भाई वेडिंग रिंग उतारकर आये।
तो ये सारे धार्मिक चिन्ह ड्रेस कोड का हिस्सा हैं और आप सेलेक्टिवली एक के पीछे पड़े हैं बाकि को छोड़।
हैरानी की बात ये है कि मुसलमान पुरुष की दाढ़ी टोपी विमर्श से गायब है, जबकि नफरत उससे भी बराबर की है।
दूसरी बात है स्वयं की इच्छा की।
कई सिख भाई बहन, इन चिन्हों का त्याग कर चुके हैं। महान गायक जगजीत सिंह ने जब केश और दाढ़ी कटवा ली थी और इसकी सूचना अपने पिता को पत्र के माध्यम से दी तो उनके पिता ने उनसे बीसों साल बात नहीं की और नाराज़ रहे। आजकल बहुत से प्रोग्रेसिव युवक युवतियाँ इन चिन्हों का स्वेच्छा से त्याग कर रहें हैं। करना भी चाहिए।
महात्मा गाँधी ने सत्य के प्रयोग पुस्तक में लिखा कि कैसे किसी घाट पर नहाते वक्त किसी साधु ने उनका तिरस्कार किया कि वो शिखा और जनेऊ दोनों नहीं पहने हुए हैं।
तब काठियावाड़ में वैश्य समाज नया नया जनेऊ और शिखा धारण करने लगा था पर गाँधी जी हिंदु धर्म के अप्रतिम समर्थक होते हुए इन दोनों पहचानों से दूर थे और उसके उनके निजी कारण थे।
कारण स्वेच्छा होनी चाहिए, जबरदस्ती नहीं।
हिजाब या बुर्का नहीं पहनने का पहला कारण गरमी से बचाव, दूसरा धार्मिक स्वतंत्रता और तीसरा कुछ भी हो सकता है। पर अगर कोई पहनना ही चाहता है, तो मनाही क्यों हो।
जो विरोध कर रहे हैं वो हिजाब, बुरके में फर्क नहीं बता सकते हैं।
किसी जानकार साहित्यकार ने लिखा कि महिला हिजाब पहनने को अपनी इच्छा बताती है पर वजह क्या है इस बात को लेकर असहज हो जाती है।
चुटिया या शिखा रखने में, दाढ़ी मूँछ रखने में, पगड़ी रखने में, टोपी पहनने में, मंगलसूत्र और घूंघट में, हिजाब में, कितनी इच्छा और स्वतंत्रता है या बंधन है इसका राष्ट्रीय सर्वे तो अवश्य होना चाहिए और यदि व्यक्ति धर्म के डर से, समाज के डर से, भाई बंधुओं के डर से पहने हुए है तो अवश्य उसे प्रोत्साहित करना चाहिए कि वो बंधन मुक्त हो और चिन्हों का सामाजिक त्याग करे।
ऐसे छात्रों को धार्मिक चिन्ह त्याग प्रोत्साहन स्कॉलरशिप योजना के तहत हर महीने कम से कम पाँच सौ रूपये देने चाहिए।
पर ये सब तो होने से रहा।

Monday, May 24, 2021

King Gharib Nawaz of Manipur

A naga named Panheiba became the raja of Manipur and adopted the Hinduism and changed the name of the state to Manipur. 

He also changed his name to Gharib Nawaz which is very interesting. 

What does Gharib Nawaz has to do with Hinduism and how come the king chose the name is not very clear as the later rajas used the names as Jai Singh, Gambhir Singh etc.?




Tikendrajit Singh

While strolling around Chanakyapuri you would come across a road named Tikendrajit Singh Road.  

If you don't already know about him, you may wonder why so? The fact that we know much more about the mainland indian heroes and so less about the heroes from North East India is one of the reasons.

Tikendrajit Singh was a Manipuri prince and military commander who led a revolt against the British during the Anglo Manipur war.

During this war, Cheif Commissioner of Assam, James Wallace Quinton was killed along with many other high ranking officers of the British Army.

A lady named Ethel Grimwood (whose husband Frank Grimwood was the British representative in Manipur and was also killed during the revolution) survived the revolution and was given the title of Heroine of Manipur.

Tikendrajit Singh is revered as a Hero of Manipur. 

Khaksar Movement

This movement was started as a reform movement by Inayatullah Khan Mashriqi. 

Inayatullah Khan was born in Amritsar and educated in both India (Lahore) and United Kingdom (then Britain).

The movement was for the freedom of India  and to end the British Rule.  The movement focused on Islamic principles and stressed upon the need for reform in the existing Islamic ways. 

The movement was organized through squad of volunteers in local areas. 

The movement was also against sectarianism and caste system which had made inroads into the Muslim Community. 

Daily physical exercise or parade and social service were the mode of action for the movement.





Al Farabi on Societies

Al-Farabi was a famous philosopher from the Islamic philosophy tradition. On the question of why and how societies decline from the ideal, h...