माओत्से तुंग ने चीन में १९५८ में "फोर पेस्टस" प्रोग्राम शुरू किया। इसका लक्ष्य था चूहों, मच्छरों, गौरैयों, और मक्खियों को मारना।
उस समय चीन में कॉलरा, मलेरिया इत्यादि बीमारियों का काफी प्रकोप था।
प्रोग्राम काफी सफल रहा और अरबों चूहों और गौरैयों का सफाया हो गया। जनता ने बढ़ चढ़ कर इस प्रोग्राम नें हिस्सा लिया। जगह जगह पोस्टर बैनर लगाये गये।
मगर इसका एक दुष्परिणाम भी हुआ। पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा ।
गौरैयों के मरने के कारण टिड्डों का प्रकोप बढ़ गया। टिड्डे और अन्य कीट सारी फसल चट कर गये।
१९५८ से १९६२ तक चीन में भारी अकाल पड़ा और लाखों लोग इसकी चपेट में आ गये।
पब्लिक पॉलिसी बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। ऐसी पॉलिसी जिससे फायदा ज्यादा हो और नुकसान कम से कम ,वही कारगर पॉलिसी होती है। और इसके लिए पॉलिसी के परिणाम और दुष्परिणाम दोनों ध्यान में रखने बेहद ज़रूरी होते हैं। सिर्फ़ अच्छी नीयत ही काफी नहीं।
उस समय चीन में कॉलरा, मलेरिया इत्यादि बीमारियों का काफी प्रकोप था।
प्रोग्राम काफी सफल रहा और अरबों चूहों और गौरैयों का सफाया हो गया। जनता ने बढ़ चढ़ कर इस प्रोग्राम नें हिस्सा लिया। जगह जगह पोस्टर बैनर लगाये गये।
मगर इसका एक दुष्परिणाम भी हुआ। पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचा ।
गौरैयों के मरने के कारण टिड्डों का प्रकोप बढ़ गया। टिड्डे और अन्य कीट सारी फसल चट कर गये।
१९५८ से १९६२ तक चीन में भारी अकाल पड़ा और लाखों लोग इसकी चपेट में आ गये।
पब्लिक पॉलिसी बनाना बहुत ही मुश्किल काम है। ऐसी पॉलिसी जिससे फायदा ज्यादा हो और नुकसान कम से कम ,वही कारगर पॉलिसी होती है। और इसके लिए पॉलिसी के परिणाम और दुष्परिणाम दोनों ध्यान में रखने बेहद ज़रूरी होते हैं। सिर्फ़ अच्छी नीयत ही काफी नहीं।
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