एक पूर्व मुख्यमंत्री, एक पूर्व लोकसभा स्पीकर और एक पूर्व प्रधानमंत्री। तीन पुराने धुरंधर नेताओं को इस बीच हमने खो दिया।
सबका अपना अलग अलग योगदान था, एक बात जो सबमें शामिल थी वो थी एक शालीन और सम्मान से भरपूर राजनीति की परिपाटी।
राजनीति में कोई आदर्श तो होता नहीं है। सभी कुछ न कुछ समझौते करते हुए, कभी सीधे खड़े तो कभी झुकते हुए नज़र आ ही जाते हैं।
सोमनाथ चैटर्जी जैसा लोकसभा स्पीकर अब शायद नये ज़माने में मिलना संभव न हो जो कि नियम कानून को ऊपर रखते हुए अपनी ही पार्टी तक से लड़ जाये।
करूणानिधि बाद में चाहें जैसे रहें हो, एक धर्म प्रधान देश में घोषित रूप से नास्तिक रहना और राजनीति में जो कि तब मूलतः धर्म आधारित हुआ करती थी को जाति की राजनीति पर मोड़ने के लिए जाने जायेंगे।
एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छे प्रधानमंत्री भारत के कौन रहे तो उनका जवाब वी पी सिंह था। मंडल कमीशन और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के योगदान को और कोई याद करे न करे करूणानिधि ने ज़रूर याद किया। राजनैतिक साफगोई का ये एक उदाहरण ज़रूर हो सकता है।
अटल बिहारी वाजपेयी उसी कड़ी के एक और महान स्तंभ थे। करूणानिधि और वाजपेयी जी में समानता ये रही कि दोनों लेखन और कला से जुड़े रहे।
आजकल के नेताओं में यह कमी खासी खलती है और यही कारण है कि राजनीति अब ओछी और क्लेष से भरपूर होती जा रही है।
आज जब सबका इतने दिन से रोका हुआ प्यार उमड़ता दिखा तो यही महसूस हुआ कि हम बस भेड़चाल मैं चलने वाले लोग हैं।
एक ने दुःख जताया और रेला लग गया। जैसे सब का सोचने का नजरिया कहीं से रिमोट कंट्रोल से संचालित हो रहा है। हम लोग बस उथले पानी में गोता लगाने वाले लोग हैं। गहराई से डरते हैं।
ये डर आजकल के लोगों में ज्यादा है। पहले नहीं था। तभी तो वाजपेयी जी कबाब खाते हुए भी उन लोगों को प्रिय रहे जो लहसुन प्याज से नाक भौं सिकोड़ लेते हैं।
करूणानिधि के सेतु समुद्रम (Adams bridge) पर विवाद के समय यह कहने और पूछने की हिम्मत थी कि यदि यह ब्रिज यदि राम के समय बना था तो वो लोग किस इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़े थे जहाँ पुल बनाने की ट्रेनिंग मिली हो।
करूणानिधि उन पेरियार के मानने वाले शिष्यों में से थे जिनकी तिरुचिरापल्ली में लगी मुर्ति के नीचे लिखा है "God does not exist. The inventor of God is a fool. The propagator of God is a scoundrel. The worshipper of God is a barbarian."
पुराने दौर की यही साफगोई शायद हम याद रखें और बचाये रखें तो यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मतभेद भले हो पर मनभेद न हो।
सबका अपना अलग अलग योगदान था, एक बात जो सबमें शामिल थी वो थी एक शालीन और सम्मान से भरपूर राजनीति की परिपाटी।
राजनीति में कोई आदर्श तो होता नहीं है। सभी कुछ न कुछ समझौते करते हुए, कभी सीधे खड़े तो कभी झुकते हुए नज़र आ ही जाते हैं।
सोमनाथ चैटर्जी जैसा लोकसभा स्पीकर अब शायद नये ज़माने में मिलना संभव न हो जो कि नियम कानून को ऊपर रखते हुए अपनी ही पार्टी तक से लड़ जाये।
करूणानिधि बाद में चाहें जैसे रहें हो, एक धर्म प्रधान देश में घोषित रूप से नास्तिक रहना और राजनीति में जो कि तब मूलतः धर्म आधारित हुआ करती थी को जाति की राजनीति पर मोड़ने के लिए जाने जायेंगे।
एक इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि सबसे अच्छे प्रधानमंत्री भारत के कौन रहे तो उनका जवाब वी पी सिंह था। मंडल कमीशन और पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण के योगदान को और कोई याद करे न करे करूणानिधि ने ज़रूर याद किया। राजनैतिक साफगोई का ये एक उदाहरण ज़रूर हो सकता है।
अटल बिहारी वाजपेयी उसी कड़ी के एक और महान स्तंभ थे। करूणानिधि और वाजपेयी जी में समानता ये रही कि दोनों लेखन और कला से जुड़े रहे।
आजकल के नेताओं में यह कमी खासी खलती है और यही कारण है कि राजनीति अब ओछी और क्लेष से भरपूर होती जा रही है।
आज जब सबका इतने दिन से रोका हुआ प्यार उमड़ता दिखा तो यही महसूस हुआ कि हम बस भेड़चाल मैं चलने वाले लोग हैं।
एक ने दुःख जताया और रेला लग गया। जैसे सब का सोचने का नजरिया कहीं से रिमोट कंट्रोल से संचालित हो रहा है। हम लोग बस उथले पानी में गोता लगाने वाले लोग हैं। गहराई से डरते हैं।
ये डर आजकल के लोगों में ज्यादा है। पहले नहीं था। तभी तो वाजपेयी जी कबाब खाते हुए भी उन लोगों को प्रिय रहे जो लहसुन प्याज से नाक भौं सिकोड़ लेते हैं।
करूणानिधि के सेतु समुद्रम (Adams bridge) पर विवाद के समय यह कहने और पूछने की हिम्मत थी कि यदि यह ब्रिज यदि राम के समय बना था तो वो लोग किस इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़े थे जहाँ पुल बनाने की ट्रेनिंग मिली हो।
करूणानिधि उन पेरियार के मानने वाले शिष्यों में से थे जिनकी तिरुचिरापल्ली में लगी मुर्ति के नीचे लिखा है "God does not exist. The inventor of God is a fool. The propagator of God is a scoundrel. The worshipper of God is a barbarian."
पुराने दौर की यही साफगोई शायद हम याद रखें और बचाये रखें तो यही हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी। मतभेद भले हो पर मनभेद न हो।
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