Wednesday, January 16, 2019

ओपन लेटर टू दो ग्राम वाले गुरू जी

ओपन लेटर टू दो ग्राम वाले गुरू जी
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वाट्सएप्प यूनिवर्सिटी में रोज़ ऐसे मैसेज बनाये और फारवर्ड किये जाते हैं । दो ग्राम दिमाग वाले लिखते हैं और बिना दिमाग वाले इसे फटाफट फारवर्ड कर देते हैं।
कई बार बिना दिमाग़ वाले निहायत पढ़े लिखे , आला दर्जे के नौकरशाह भी हो सकते हैं।
अब हम जैसे जिनका दिमाग एक ग्राम का है उन्हें फैक्ट चेक करने का कीड़ा है।
अरे अशोका रोड तो है, वहीं शांघरीला ईरोस होटल के बाँए बाजू से शुरू होता है। मतलब कि हम अशोक को नहीं भूले ।
मुगलों ने क्योंकि दिल्ली बसाई और यहाँ के शहंशाह थे तो गलती से सड़कों के नाम उनके नाम पर रख दिये गये। वरना मुगल तो पुरानी दिल्ली वाले थे, नई दिल्ली की सड़कों से उनका कोई ताल्लुक नहीं था।
एक सड़क है राष्ट्रपति भवन के पीछे नाम है मदर टेरेसा क्रेसेंट । बिल्कुल आधे चाँद के आकार की सड़क है । इसका पुराना नाम लार्ड विलिंगडन क्रेसेंट था। लार्ड साहब चले गये तो मदर टेरेसा के नाम हो गया।
गलती से क्या है मुगल आये तो फरगना और समरकंद से पर यहीं बस गये। बाबर फरगना से था पर बाकि सारे तो यहीं पैदा हुए और दफन भी यहीं हैं।
अपने मकबरे भी बनवा गये जनता के पैसे से। अब भाई शहंशाह थे तो टैक्स लेते थे और मकबरे लेकिन अपना ही बनवाते थे।
हुमायूँ का मकबरा मथुरा रोड पर। अकबर का आगरा के नज़दीक सिकंदरा में। बाबर का काबुल में है तो टेकनिकली वो बाहर ही पैदा हुआ और बाहर ही मकबरा भी है ।
निजामुद्दीन औलिया पहुँचे हुए फकीर थे और आज जहाँ निजामुद्दीन औलिया की दरगाह है उसके परली यानि उल्टी तरफ हजरत निजामुद्दीन स्टेशन । क्योंकि जब स्टेशन बना होगा तो उस एरिया को लोग निजामुद्दीन ही कहते रहे होंगे। वैसे अब नाम बदलने में कोई हर्ज़ भी नहीं।
दरगाह पर जाने का तो ये आलम है कि देवबंदी और वहाबी तबके वाले दरगाह पर जाना ही गलत मानते हैं। बरेलवी मिज़ाज वाले जाते हैं। इस्लाम वाले ही आपस में बंटे हुए हैं।
दो ग्राम वाले ने सूफियाना को गलती से सूफियान लिख दिया है। तो हे भाई दो ग्राम मगज़ वाले मिज़ाज सूफियाना होता है, सूफियान नहीं।
औरंगज़ेब रोड तो अब रहा नहीं , अब्दुल कलाम रोड हो गया है यानि कि "भूल चूक लेनी देनी" हो गया है।
रहा तुगलकाबाद का सवाल तो गुरू घंटाल साहेब, तुगलकाबाद किला जो है वो गयासुद्दीन तुगलक नाम के एक बादशाह ने बनवाया था। उसको भी आपकी ही तरह अपने होने पर बड़ा घमंड था। कहते हैं कि लोगों को कहा कि हमारे किले को बनाने के लिए बेगार करो।
लोग किये क्या करते। कुछ निजामुद्दीन औलिया के पास अपना दुखड़ा रोने पहुँचे। हजरत ने कहा नथिंग डूईंग ।
तुगलक उस समय दिल्ली से दूर था। पैगाम भिजवाया कि हजरत निजामुद्दीन दिल्ली आकर देखता हूँ आपको।
हजरत ने कहा " हनूज दिल्ली दूर अस्त" मतलब कि दिल्ली अभी दूर है । तुगलक बहादुर दिल्ली पहुँचे ही नहीं , रास्ते में ही खत्म हो गये । तो जनाब सूफियों से पंगा नहीं लेते । दुआ लेते हैं उनकी।
जामिया नगर जामिया यूनिवर्सिटी के नाम से पड़ गया । जब यूनिवर्सिटी बनी थी इलाका गांव टाइप था। ज़ाकिर हुसैन टाइप लोग जो हिन्दुस्तान को अपना मुल्क मानते थे और गांधी जी से इंस्पायर थे उन्होंने अलीगढ़ वालों से अलग होकर यूनिवर्सिटी बनायी। गांधी जी ने वहीं पास की हरिजन बस्ती में अपना डेरा जमाया था।
सफदरजंग लखनऊ वाले थे पर दिल्ली दरबार में नज़ारे आज़म मतलब प्रधानमंत्री थे। पावर फुल आदमी थे। लिहाजा अपना मकबरा दिल्ली में बनवा लिया। पास की सड़क का नाम सफदरजंग रोड हो गया। मकबरा शानदार है , २५ रूपये का टिकट है। भारत सरकार के खाते में जाता है। कभी हो आइये। शानदार इमारत है।
राजेन्द्र बाबू के नाम राजेन्द्र प्लेस है, जहाँ सरकारी दफ्तर वगैरह हैं। वैसे ही जैसे नेहरू प्लेस, नेताजी सुभाष प्लेस या भीकाजी कामा प्लेस है।
वीर कुंवर सिंह का दिल्ली से कुछ खास लेना देना था नहीं । आरा जो कि बिहार में है वहाँ से है। वहाँ उनके नाम का बहुत कुछ है । मेरे ज़िले बलिया से होते हुए गंगा नदी पार किये थे। जिसमें कि अपना हाथ तलवार से काट कर गंगा में बहा दिया ताकि जख्म का ज़हर शरीर में न फैले। बलिया में उनके नाम एक डिग्री कॉलेज भी है। दिल्ली में भी कहीं नाम आ जाये तो अच्छा ही है।
महाराणा प्रताप और शिवाजी महाराज ने दिल्ली में एक ईंट नहीं लगवायी । जहाँ लगवाई वहाँ उनके नाम दर्ज हैं।
अब चिकमंगलूर का विधायक ये कहने लगे कि उसे राष्ट्रपति भवन में रहना है तो ये कहाँ संभव है। विधायक छोटा ओहदा है। ये अलग बात है कि विधायक जी दिल के ज्यादा करीब हो सकते हैं जैसे कि महाराणा प्रताप या शिवाजी महाराज ।
सराय काले खाँ, काले खाँ नाम के एक पीर बाबा हुआ करते थे। दिल्ली एयरपोर्ट ( सफदरजंग एरिया) के पास उनकी मज़ार है । काले खाँ साहब पीर थे इसलिए पास की सराय का नाम सराय काले खाँ पड़ गया । पुरानी दिल्ली से महरौली जाते वक्त लोग यहाँ सुस्ताते थे।
दिल्ली पूरे हिन्दुस्तान की राजधानी थी सो नाम भी शामिल हाल थे। कुछ खुराफातियों ने पाकिस्तान बनवा लिया। उनकी राजधानी इस्लामाबाद है । नई बनवायी। पुराने लाहौर को नहीं रखा। हमारी नई दिल्ली की तरह । हमने नाम मिला जुला कर रखे । क्योंकि हम वसुधैव कुटुम्बकम वाले हैं। गुरु जी आप कौन से वाले हैं ?
चंद्रगुप्त मौर्य के नाम दिल्ली में क्या है कुछ याद नहीं आ रहा । पटना में ज़रूर होगा ।
रहा सड़कों का सवाल तो चाणक्य मार्ग ज़रूर है। वो पक्के वाले गुरू थे, आपकी तरह गुरू घंटाल नहीं।
दो और सड़कें भी हैं, सत्य मार्ग और न्याय मार्ग । उस पर ज़रूर चलिये।
साथ ही नीति मार्ग भी है। अच्छी नीति ही लंबा चलती है।
राम राम ।

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