धर्म और बाल
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शरीर पर बाल उगना यूँ तो जैविक क्रिया है। पर बालों को धर्म से जोड़ देना इन्सान के साथ बड़ा अन्याय है।
इस्लाम वाले कहते हैं कि दाढ़ी रखना सुन्नत है क्योंकि पैगम्बर साहब रखते थे। मूछ नहीं रखनी चाहिए क्योंकि उसमें खाना पानी फंसने की संभावना है।
ये मुझे कभी समझ नहीं आया कि कैसे खाना मूँछ में तो फंस सकता है पर दाढ़ी में नहीं।
अब पता नहीं चौदह सौ साल पहले शेविंग क्रीम और रेज़र था कि नहीं पर तब यदि जिलेट कंपनी होती तो शायद ही कोई खुजली से भरे गालों को सहलाना चाहता।
सिख धर्म केश, कंघा , कच्चा, क्रिपाण और कड़ा पहनने को कहता है। केश मुझे तो लगता है कि सर के बालों से ही ताल्लुक होगा। पर मानने वालों ने बात को लिटरली ले लिया और हर कहीं पर बाल संभालने शुरू कर दिये।
कुछ हिंदु धर्म वाले बाल और दाढ़ी ट्रिम तो करवा लेते हैं पर उस्तरा या रेज़र नहीं लगवाते । लॉजिक समझ से परे है। चुरकी या चुटिया रखने का भी चलन है।
जैन धर्म में केश लोचन परंपरा है जिसमें जैन साधु दीक्षा के बाद एक एक कर के अपने बाल उखड़वाते हैं। ये कहके कि अब दु:ख तब सुख। वैसे तो जैन धर्म अहिंसा पर विश्वास करता है पर ये मानव शरीर पर एक तरह से हिंसा ही है ।
ईसाई धर्म में कुछ या मानना है प्रभु ने हमें जैसे भेजा मतलब विथ हेयर तो इसलिए हेयर रिमूवल नहीं करना चाहिए। दैट मिन्स कीप लांग हेयर ।
कुछ परंपरागत यहूदी भी लंबी दाढ़ी रखने को मानते हैं।
बहुत समय तक तो महिलाओं के खुले बाल उनके कैरेक्टर सर्टिफिकेट का भी स्रोत बनते थे।
बालों की आसान समस्या और खुजली से निज़ाम या असली उपाय है रेज़र और हेयर रिमूवल ।
धर्म अगर इस आसान मसले को भी नहीं सुलझा पाता तो कैसा धर्म है? और क्या जीने का रास्ता सिखायेगा ?
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