हर साल नाना प्रकार के लोगों को नाना प्रकार के अवार्ड दिये जाते हैं । जिस प्रकार पुरस्कारों की संख्या बढ़ रही है उससे लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब लोग कम और पुरस्कार ज्यादा हो जायेंगे ।
कभी पुरस्कार विरोधियों को बांटे जाते हैं जिससे कि वो पक्ष में आ जायें, तो कभी अपने पक्ष वालों को ताकि वो दूर नहीं छटकें।
जहाँ पुरस्कार मिलने की संभावना बिल्कुल नहीं होती वहाँ रोजमर्रा के काम भी विशिष्ट सेवा की श्रेणी में डाल दिये जाते हैं। फिर सबसे तेज़ दातून करने वाला भी पुरस्कार पाने का हकदार हो जाता है ।
कभी कभी तो बस एक दिन के सालाना जलसे के लिए पुरस्कार की नई श्रेणियाँ गठित होती हैं।
जिसे नहीं मिल पाता पुरस्कार वो अगले साल खुद एक पुरस्कार का ऐलान कर वो अवार्ड खुद को कर लेता है।
समस्या सामान्य ग्यान पढ़ने वालों छात्रों की विकट हो जाती है, कितने लोगों के नाम और कितने पुरस्कारों के नाम याद करें?
टीवी फिल्म अादि में तो इतने पुरस्कार समूह हो गये हैं कि हर दिन कहीं न कहीं अवार्ड सेरेमनी चल रही होती है।
आम जन मानस के लिये भी पुरस्कार होने चाहिए, ताकि वो भी कभी स्टेज पर चढ़कर फोटो खिचा सकें।
झाडू पोछे करने वाली बाई के लिए अलग से पुरस्कार होना चाहिए और साथ ही रेटिंग एजेंसी जो फाइव स्टार रेटिंग वगैरह दे सके।
खेत में अच्छी कोड़ाई या धान के खेत में रोपाई से संबंधित पुरस्कार तो कहीं है ही नहीं।
मैक्डॉनल्ड वगैरह कंपनियों ने ज़रूर इम्पलाई ऑफ द मंथ शुरू कर दिया है। ये कुछ नौकरशाही के पुरस्कार जैसा ही है जो कुछ नौकरशाह अपने पसंदीदा लोगों को हर महीने साधारण रूपी असाधारण कार्यों के लिए देते रहते हैं ।
अवार्ड समारोहों में अभी भी गणतंत्र वाली महिमा नहीं आयी है। वैसे गणतंत्र दिवस की मुबारकबाद तंत्र के लोगों को, इस दुआ के साथ कि तंत्र गण के पीछे ही लगे।
गण लोगों का भी दिवस आयेगा।
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