Friday, September 21, 2018

प्लासी का युद्ध मीर जाफर और जगत सेठ की गद्दारी के कारण नवाब सिराजुद्दौला को हारना पड़ा और ब्रिटिश शासन की हिन्दुस्तान में नींव पड़ी।

देश से गद्दारी के लिए जयचंद के बाद मीर जाफर का नाम भी लिया जाने लगा।

जगत सेठ दरअसल एक बैंकर फैमिली थी। व्यक्ति का नाम जगत सेठ नहीं था बल्कि उसे " द हाउस ऑफ जगत सेठ" के नाम से चर्चित था।

फाइनेंस या इकॉनमी शुरू में मुगलों ने ज्यादातर अपने पास रखा। फिर भी ज्यादातर काम बनिया या मारवाड़ी परिवार ही किया करते थे।

अकबर के समय भी राजा टोडरमल थे जो कि वित्त और राजस्व का काम देखते थे।

शुरू में बंगाल में भी राजस्व का काम भी नवाब अली वर्दी खान के पास ही हुआ करता था। लेकिन बाद में जगत सेठ के पूर्वजों ने दिल्ली दरबार से यह फरमान जारी करवा लिया कि मिंट और राजस्व का काम वह लोग देखेंगे। 

कहा जाता है कि एक समय नवाब के खजाने में जाने वाले चार रूपये में से तीन रूपये जगत सेठ के पास जमा होते थे। जगत सेठ का नाम ही ऐसे पड़ा कि दुनिया के बैंकर। अपने समय में वो शायद दुनिया के सबसे बड़े बैंकर और मनी लेंडर थे।

जब राज्य का राजस्व और खजाना प्राइवेट हाथों में हो तो उसका बेड़ा गर्क होना तय ही है।

जगत सेठ और अमीर चंद दोनों ने मिल कर अंग्रेजों का साथ दिया। सेना बिना पैसे के तो चलती नहीं है। ६०,००० की हाथी घोड़ों से भरी सेना तीन हजार अंग्रेजों से हार गयी क्योंकि नवाब की सेना ने लड़ने से मना कर दिया।

आप एक शासक की हालत सोचें जो युद्ध के मैदान में खड़ा हो और सेना लड़ने से इंकार कर दे क्योंकि सेना को पैसों से खरीद लिया गया हो।

जगत सेठ तब के और आज के जगत सेठों में कोई खास अंतर नहीं है। इतिहास पढ़ना जरूरी होता है ताकि आज सलामत रहे।

No comments:

Al Farabi on Societies

Al-Farabi was a famous philosopher from the Islamic philosophy tradition. On the question of why and how societies decline from the ideal, h...