फुटबॉल वर्ल्ड कप में किसी भी यूरोपीय देश की टीम को देख लीजिए, हर देश में एक अश्वेत खिलाड़ी, कोई रिफ्युज़ी जो उस देश में बस गया हो उसका एक सदस्य जरूर नज़र आ जायेगा।
ये दर्शाता है कि ये देश भले ही अनेकता में एकता का ढिंढोरा न पीटते हों पर वास्तव में बहुरंगी समाज का निर्माण कर रहे हैं।
मूल रूप से ये देश श्वेत ही रहे हों पर बीते समय में उन्होंने अन्य देशों से अपने यहाँ लोगों को बसने दिया। उन्हें स्वीकारा और आगे बढ़ने का मौका प्रदान किया।
पर क्या ये हम आज के अपने समाज के बारे में कह सकते हैं?
हम पुराने समय में तो चाहे जितने पारसियों, यहूदियों, ईसाईयों और अन्य धर्मों के लोगों, अन्य देशों के लोगों को अपनाते रहे हों, पर अब वो हमारा खुला दिल उतने अच्छे से नज़र नहीं आता।
हम लोग पीछे जा रहे हैं। कितना पीछे जायेंगे ये समय ही बतायेगा।
ये दर्शाता है कि ये देश भले ही अनेकता में एकता का ढिंढोरा न पीटते हों पर वास्तव में बहुरंगी समाज का निर्माण कर रहे हैं।
मूल रूप से ये देश श्वेत ही रहे हों पर बीते समय में उन्होंने अन्य देशों से अपने यहाँ लोगों को बसने दिया। उन्हें स्वीकारा और आगे बढ़ने का मौका प्रदान किया।
पर क्या ये हम आज के अपने समाज के बारे में कह सकते हैं?
हम पुराने समय में तो चाहे जितने पारसियों, यहूदियों, ईसाईयों और अन्य धर्मों के लोगों, अन्य देशों के लोगों को अपनाते रहे हों, पर अब वो हमारा खुला दिल उतने अच्छे से नज़र नहीं आता।
हम लोग पीछे जा रहे हैं। कितना पीछे जायेंगे ये समय ही बतायेगा।
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