जोश मलीहाबादी उम्दा शायर थे और जैसा कि नाम और तख़ल्लुस से ज़ाहिर है, उत्तर प्रदेश के मलीहाबाद से ताल्लुक रखते थे।
मलीहाबाद लखनऊ के पास है और अपने आम के बागों के लिए मशहूर है।
जोश बाद में पाकिस्तान चले गये और इस्लामाबाद में दुनिया से रूखसत हुए।
मलीहाबाद के नाम एक नज़्म लिखी , उसका एक टुकड़ा नीचे दिया है। कोई अपने वतन से दूर भले हो जाये पर खुद को वतन से दूर नहीं कर पाता।
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आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुरखरोश
मेरी फ़ुरक़त में लहू रोएगी चश्मे मय फ़रामोश
रस की बूंदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश
कुंज-ए-रंगीं में पुकारेंगी हवाएँ 'जोश जोश'
सुन के मेरा नाम मौसम ग़मज़दा हो जाएगा
एक महशर सा गुलिस्तां में बपा हो जाएगा
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा
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मलीहाबाद लखनऊ के पास है और अपने आम के बागों के लिए मशहूर है।
जोश बाद में पाकिस्तान चले गये और इस्लामाबाद में दुनिया से रूखसत हुए।
मलीहाबाद के नाम एक नज़्म लिखी , उसका एक टुकड़ा नीचे दिया है। कोई अपने वतन से दूर भले हो जाये पर खुद को वतन से दूर नहीं कर पाता।
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आम के बाग़ों में जब बरसात होगी पुरखरोश
मेरी फ़ुरक़त में लहू रोएगी चश्मे मय फ़रामोश
रस की बूंदें जब उड़ा देंगी गुलिस्तानों के होश
कुंज-ए-रंगीं में पुकारेंगी हवाएँ 'जोश जोश'
सुन के मेरा नाम मौसम ग़मज़दा हो जाएगा
एक महशर सा गुलिस्तां में बपा हो जाएगा
ऐ मलिहाबाद के रंगीं गुलिस्तां अलविदा
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